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"जिन्दगी, भागदौड़ और ठहराव"

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ऊपर से देखा गया शहर कुछ अलग ही महसूस होता है। जैसे —गाड़ियों की कतार, अनगिनत लाल और सफेद रोशनी, तेज़ रफ्तार, और दोनों ओर चलती ज़िन्दगियाँ। यह सिर्फ एक सड़क नहीं, यह एक प्रतीक है—हम सबकी दौड़ का, हमारी दिन-रात की भागमभाग का।   हर एक गाड़ी में कोई न कोई कहानी है। कोई ऑफिस से लौट रहा है, कोई घर पहुँचने की जल्दी में है, कोई किसी से मिलने को बेताब, और कोई बस इस जाम का हिस्सा बन चुका है। पर सबकी मंज़िलें शायद एक जैसी नहीं, पर सफर सबका उतना ही भारी, उतना ही जटिल है।   बाईं तरफ का ट्रैफिक देखो—ठहराव भरा, जैसे जीवन के वो हिस्से जो रुकना चाहते हैं, पर रुक नहीं पाते। और दाईं तरफ—खाली सड़क पर तेज़ी से भागती गाड़ियाँ, जैसे जीवन के वो पल जो गुज़रते तो हैं, पर हमें उनका एहसास तक नहीं होता।  हम सब दौड़ रहे हैं—किसी नाम, किसी मुकाम, किसी तसल्ली की तलाश में। मगर ये तलाश कई बार हमें खुद से ही दूर ले जाती है। हम अपने ही विचारों, इच्छाओं और सपनों की आवाज़ सुनना भूल जाते हैं। और तब—एक तस्वीर, एक रात का सन्नाटा, एक मोमेंट हमें आईना दिखा जाता है। कभी-कभी, इस तेज़ दौड़ में र...