"गाँव की स्मृतियों में"



चाहे किसी भी शहर में बस जाओ;
वो शहर भी हमारे लिए अपना गाँव ही बन जाता है।
आज इस तस्वीर को देख मन के किसी कोने में वह शाम फिर से सांस लेने लगी है—गाँव की वो उदास धूप में बुझती शाम, जब मंदिर के घंटों की आवाज़ मन में एक अजीब सा सुकून भर देती थी। वह पीपल का विशाल वृक्ष, जिसकी जड़ों में बचपन की हर क्रीड़ा समाई हुई थी, उसकी छाँव में बैठे घंटों बीत जाया करते थे। शहर के इस बगीचे में यह मंदिर और ये पेड़ देखकर हृदय में वो गहरी टीस उठी है—जैसे कोई भूली हुई स्मृति अचानक जीवन्त हो उठी हो।

तब की शामें कितनी सरल थीं। जब दिन भर की कड़ी धूप और खेतों की सोंधी महक के बीच खेलते-खेलते जब थक जाते, तो चौपाल पर जाकर बैठते थे। हमारे पैरों में धूल होती थी, और आँखों में सपनों की चमक। मंदिर के घंट और आरती के स्वर गाँव को एक मधुर संगीत से भर देते थे। पीपल के नीचे रखे पत्थरों पर बैठकर हमने कितनी ही बार गाँव के भविष्य के सपने देखे थे—वो सपने जो पक्की सड़कों और ऊँची इमारतों में खो गए।

यहाँ इस शहर के बगीचे में, जब हवा उन पत्तों को सरसराती है, तो लगता है जैसे गाँव का वही पीपल हमसे बात कर रहा हो। वह मंदिर की मद्धम रोशनी, जिसके सामने माथा टेकते हुए हर चिंता हल्की हो जाती थी, आज इस शहर के मंदिर में भी वैसी ही दिव्यता भर देती है। लेकिन फर्क यह है कि अब वहाँ गाँव की वह आत्मीयता नहीं, बस स्मृतियों की एक भीगी सी अनुभूति है।

गाँव में हर पेड़, हर गली, और हर शाम मानो हमारी अपनी होती थी। वहाँ अजनबी कोई न था। मंदिर के पीछे के बाग में लगे आम के पेड़ों से गिरते पके आमों को बटोरने की उत्सुकता और उसपर दोस्तों के साथ होने वाली हँसी-ठिठोली अब भी दिल में गुदगुदी कर देती है। वह सुकून जो गाँव की मिट्टी में था, आज शहर की इस हरियाली में भी खोजने की कोशिश करता हूँ। लेकिन मन जानता है—वह सुकून सिर्फ़ गाँव की माटी में ही सांस लेता था।

आज इस तस्वीर में, यह शाम, यह पेड़, और यह मंदिर मेरे भीतर का एक कोना खोलते हैं। वह कोना जहाँ गाँव का हर पल, हर अनुभूति धूल भरे पैर लिए खड़ी है। हर वह कहानी, जो दादी ने सुनाई थी, और हर वह सपना, जिसे हमने गाँव की गीली पगडंडियों पर चलते हुए देखा था, अब दिल के किसी गहरे कोने में सिमटा हुआ है।

शहर में चाहे कितनी भी रोशनी हो, मगर गाँव की वह ढलती शाम, जिसकी रोशनी मंदिर की मद्धम लौ से आती थी, वह अनमोल है। वह मंदिर, वह पीपल, और वह गाँव का सुकून अब भी मेरी आत्मा के हर धड़कन के साथ बहता है।


~सौरभ 



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