और वो रात


रात के बारह बज चुके थे। ठंड इतनी तेज थी कि छत पर खड़ा होना किसी जंग लड़ने जैसा लग रहा था। आसमान में चाँद पूरी शिद्दत से चमक रहा था, और एक सिग्नल टावर अपने हरे-लाल बल्बों के साथ दूर खड़ा था, जैसे कोई पहरेदार हो।

फोन की घंटी बजते ही उसने कॉल उठा ली।
"कैसी हो?" मैंने पूछा, अपनी सांसों को गर्मी देते हुए।
"बस... ठीक हूँ।" उसकी आवाज़ में हल्की थकान थी, जैसे दिनभर किसी दुनिया में गुम रहने के बाद लौटी हो।
"ठीक? तबीयत ठीक नहीं लग रही तुम्हारी?"
"हाँ, हल्का बुखार है," उसने धीमे से कहा, "पर काम रुकता कहाँ है?"

"कौन-सा काम?" मैंने उत्सुकता से पूछा।
"किताब पर काम कर रही थी," उसने कहा।
"तुम लिखती हो?" मैं थोड़ा हैरान हुआ।
"हाँ, कहानियाँ। ख़्यालों से भरी कहानियाँ।"
उसके जवाब में कुछ ऐसा था, जो ठंडी हवा के झोंके के बावजूद गर्मी का एहसास दे गया।

"क्या लिख रही हो आजकल?" मैंने जानना चाहा।
"एक लड़की की कहानी... जो चाय से बातें करती है।"
"चाय?"
"हाँ," उसने मुस्कुराते हुए कहा, "चाय मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। जब भी कुछ लिखती हूँ, चाय का कप साथ रहता है। ये हर बार नई बातें बताती है, जैसे कोई पुरानी किताब हो जिसकी खुशबू हर घूँट में बस जाती है।"

मैंने उसकी आवाज़ में छिपी नर्मी को महसूस किया।
"तो फिर, आज की चाय ने क्या बताया?"
"कि सर्दियाँ... सबसे खूबसूरत होती हैं," उसने चुप्पी तोड़ी, "और कभी-कभी, अनजान आवाजें सबसे सच्ची दोस्त बन जाती हैं।"

मैंने चाँद की तरफ देखा, उसकी रोशनी टावर की ऊँचाई को छू रही थी।
"तुमसे मिलना चाहता हूँ," मैंने कहा, जैसे अपने मन की दीवारें गिरा दी हों।
"मध्यप्रदेश में," मैंने धीरे से जोड़ा।

वो हंसी, लेकिन हल्की सी।
"तब तक इंतज़ार करना पड़ेगा," उसने कहा। "तुम किताबों को प्यार करना सीख लो, और मैं तुम्हारी कहानियों में मिल जाऊँगी।"

उसकी आवाज़ धीरे-धीरे शांत होती चली गई। लेकिन मैं वहीं खड़ा रहा—छत पर, उस ठंडी हवा में, जहाँ चाँद और टावर के बीच कोई अदृश्य पुल था। शायद वो पुल उस मुलाकात तक ले जाएगा, जहाँ मैं उसे देखूंगा... किताबों का जिक्र करूंगा पतझड़ को निहारूंगा और उसके साथ एक कप चाय पीऊंगा ।







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