"सफर और ठहराव"


मृत्यु, समय, और जीवन के सफर का संबंध ऐसा है, जैसे धागों में बुना कोई पुराना वस्त्र—जहां हर धागा एक अनुभूति है, और हर गांठ एक अंत या नई शुरुआत। मृत्यु का अनुभव एक ठहराव नहीं, बल्कि निरंतरता का भान कराता है। यह समय के चक्र में एक ऐसा बिंदु है, जहां गति थमने का आभास देती है, लेकिन भीतर ही भीतर एक अदृश्य प्रवाह बना रहता है।

समय की प्रकृति अपरिहार्य है—यह कभी रुकता नहीं, केवल हमारी स्मृतियों में ठहरता है। जैसे हवा अपने निशान छोड़ जाती है, समय भी अपने गुजरने का एहसास हर क्षण में करता है। लेकिन क्या समय को पकड़ पाना संभव है? जवानी की तेजी में यह हाथों से फिसल जाता है, और बुढ़ापे की गहराई में यह धीरे-धीरे रिसता है। जो कुछ आज स्थिर दिखता है, वह भी कल बदल जाएगा—यह बदलाव ही समय का सार है।

यौवन उत्साह से भरा एक दौड़ता हुआ क्षण है, जिसमें संभावनाएं अनंत होती हैं। परंतु बुढ़ापा एक सजीव दर्पण है, जिसमें हर संघर्ष, हर स्मृति की छवि बनती-बिगड़ती रहती है। यौवन में हम भविष्य के स्वप्न देखते हैं, लेकिन बुढ़ापे में हम अतीत की कहानियों को सहेजते हैं। क्या यह बदलाव हानि है या जीवन की पूर्णता की ओर एक सहज यात्रा?

सफर वह स्थिति है, जहां हर पल आगे बढ़ता है। कुछ पड़ाव हमें रुकने पर मजबूर करते हैं, परंतु रुकना भी एक अनुभव है—जैसे किसी मोड़ पर थमकर पीछे की ओर देखना। यह रुकना कोई अंत नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन का अवसर है। जीवन के हर मोड़ पर जो ठहराव मिलता है, वह यात्रा का एक अनिवार्य हिस्सा है—उस मौन का क्षण, जहां सब कुछ थम जाता है, पर भीतर एक गूढ़ संवाद चलता रहता है।

मृत्यु और जीवन का यह द्वंद्व, समय का यह अटूट प्रवाह, और सफर की अनिश्चितताएं हमें यह सिखाती हैं कि परिवर्तन ही एकमात्र स्थायित्व है। हर अंत में एक नया आरंभ छिपा होता है, और हर यात्रा एक कहानी है जो कभी पूरी तरह खत्म नहीं होती।

~सौरभ 

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