"पास होने जैसा"

कभी-कभी लोग ज़िंदगी में इस तरह दाख़िल होते हैं जैसे किसी पुराने गाने की धुन अचानक कहीं बज उठे — जानी-पहचानी, फिर भी नई। और फिर वक़्त, जगह, ज़िम्मेदारियाँ, सब कुछ बीच में आ जाता है। एक समय आता है जब मिलने की बात, एक साथ चाय पीने की योजना, बस चैट के इमोजी तक सीमित रह जाती है। लेकिन फिर भी, दोस्ती टिकी रहती है। किसी कोने में साँस लेती हुई — शांत, पर ज़िंदा।

लंबी दूरी की दोस्ती आसान नहीं होती।
बातें मिस होती हैं, हँसी अधूरी लगती है, और सबसे ज़्यादा — वो लम्हे जिनमें हम सिर्फ साथ बैठ कर चुप भी रह सकते थे, वो अब स्क्रीन पर मेसेज बन जाते हैं। कभी typing... तो कभी seen... लेकिन फिर भी, जो सच्चा होता है, वो टिका रहता है।

इस दोस्ती में समय ज़्यादा लगता है, समझ ज़्यादा चाहिए होती है।
कभी-कभी दूसरे की ज़िंदगी इतनी व्यस्त हो जाती है कि जवाब आने में दिन लग जाते हैं। और फिर भी, जब एक "कैसे हो?" आता है, तो उस एक लाइन में महीनों की सारी दूरी भर जाती है।

लंबी दूरी की दोस्ती में अक्सर कोई ग़लतफ़हमी नहीं होती — बस अधूरी कहानियाँ होती हैं, अधूरी मुलाक़ातें। लेकिन इसका एक अलग ही सौंदर्य होता है। यहाँ रिश्ते "रखने" पड़ते हैं — actively। यहाँ हर छोटी कोशिश, एक बड़ी warmth बन जाती है। हर voice note, हर meme भेजना, हर random song link — वो सब एक invisible धागे की तरह होता है जो एक दूसरे से जोड़े रखता है।

और जो दोस्त लंबी दूरी में भी तुम्हारे साथ हैं, वो शायद ज़िंदगी की सबसे प्यारी कमाई होते हैं।
क्योंकि उन्होंने तुम्हारी physical मौजूदगी के बिना भी तुम्हें चुना है।
उन्होंने सिर्फ तुम्हारे शब्दों, तुम्हारी यादों और तुम्हारी virtual हँसी से दोस्ती निभाई है।

इस दोस्ती की सबसे सुंदर बात यह है कि यहाँ ego नहीं, calendar नहीं, excuses नहीं चलते। यहाँ सिर्फ connection होता है — और उसकी अपनी एक गहराई होती है, जो शायद किसी पास बैठे दोस्ती से भी गहरी हो सकती है।

तो अगर तुम्हारे पास कोई ऐसा दोस्त है जो दूर है, पर अब भी दिल के पास है — तो उसे शुक्रिया कह देना।
क्योंकि उसने तुम्हें वक़्त और दूरी की परवाह किए बिना थामा हुआ है।

~ सौरभ सिंह 

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