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"पास होने जैसा"

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कभी-कभी लोग ज़िंदगी में इस तरह दाख़िल होते हैं जैसे किसी पुराने गाने की धुन अचानक कहीं बज उठे — जानी-पहचानी, फिर भी नई। और फिर वक़्त, जगह, ज़िम्मेदारियाँ, सब कुछ बीच में आ जाता है। एक समय आता है जब मिलने की बात, एक साथ चाय पीने की योजना, बस चैट के इमोजी तक सीमित रह जाती है। लेकिन फिर भी, दोस्ती टिकी रहती है। किसी कोने में साँस लेती हुई — शांत, पर ज़िंदा। लंबी दूरी की दोस्ती आसान नहीं होती। बातें मिस होती हैं, हँसी अधूरी लगती है, और सबसे ज़्यादा — वो लम्हे जिनमें हम सिर्फ साथ बैठ कर चुप भी रह सकते थे, वो अब स्क्रीन पर मेसेज बन जाते हैं। कभी typing... तो कभी seen... लेकिन फिर भी, जो सच्चा होता है, वो टिका रहता है। इस दोस्ती में समय ज़्यादा लगता है, समझ ज़्यादा चाहिए होती है। कभी-कभी दूसरे की ज़िंदगी इतनी व्यस्त हो जाती है कि जवाब आने में दिन लग जाते हैं। और फिर भी, जब एक "कैसे हो?" आता है, तो उस एक लाइन में महीनों की सारी दूरी भर जाती है। लंबी दूरी की दोस्ती में अक्सर कोई ग़लतफ़हमी नहीं होती — बस अधूरी कहानियाँ होती हैं, अधूरी मुलाक़ातें। लेकिन इसका एक अलग ही सौंदर्...

"जिन्दगी, भागदौड़ और ठहराव"

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ऊपर से देखा गया शहर कुछ अलग ही महसूस होता है। जैसे —गाड़ियों की कतार, अनगिनत लाल और सफेद रोशनी, तेज़ रफ्तार, और दोनों ओर चलती ज़िन्दगियाँ। यह सिर्फ एक सड़क नहीं, यह एक प्रतीक है—हम सबकी दौड़ का, हमारी दिन-रात की भागमभाग का।   हर एक गाड़ी में कोई न कोई कहानी है। कोई ऑफिस से लौट रहा है, कोई घर पहुँचने की जल्दी में है, कोई किसी से मिलने को बेताब, और कोई बस इस जाम का हिस्सा बन चुका है। पर सबकी मंज़िलें शायद एक जैसी नहीं, पर सफर सबका उतना ही भारी, उतना ही जटिल है।   बाईं तरफ का ट्रैफिक देखो—ठहराव भरा, जैसे जीवन के वो हिस्से जो रुकना चाहते हैं, पर रुक नहीं पाते। और दाईं तरफ—खाली सड़क पर तेज़ी से भागती गाड़ियाँ, जैसे जीवन के वो पल जो गुज़रते तो हैं, पर हमें उनका एहसास तक नहीं होता।  हम सब दौड़ रहे हैं—किसी नाम, किसी मुकाम, किसी तसल्ली की तलाश में। मगर ये तलाश कई बार हमें खुद से ही दूर ले जाती है। हम अपने ही विचारों, इच्छाओं और सपनों की आवाज़ सुनना भूल जाते हैं। और तब—एक तस्वीर, एक रात का सन्नाटा, एक मोमेंट हमें आईना दिखा जाता है। कभी-कभी, इस तेज़ दौड़ में र...

"महाकुंभ: आस्था के मेले से आत्मा के सफ़र तक"

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चारों ओर अंधेरा था, लेकिन तंबुओं से छनकर आती रोशनी अब भी टिमटिमा रही थी। हवा में धूप, चंदन और कहीं-कहीं जलते उपलों की महक घुली थी। कुछ देर पहले तक जहाँ मंत्रों का जाप था, वहाँ अब हल्की खामोशी थी। साधु-संत जो दिनभर प्रवचन में लीन रहते थे, अब धीरे-धीरे अपने रास्ते पकड़ रहे थे। श्रद्धालु जो आस्था में डूबकर हर सुबह गंगा में उतरते थे, अब आखिरी बार जल छूकर लौट रहे थे।   महाकुंभ खत्म हो रहा था, पर क्या सच में?   कुछ दिन पहले तक यही ज़मीन लोगों की अनगिनत कहानियों की गवाह थी। कोई यहाँ अपने पाप धोने आया था, तो कोई पुण्य कमाने। कोई अपनी बिछड़ी आस्था को फिर से खोजने, तो कोई जीवन-मरण के चक्र को समझने। एक अजीब सी बेचैनी थी—लोग यहाँ आए थे कुछ पाने, कुछ छोड़ने, कुछ महसूस करने। अब सब वापस जा रहे थे, शायद बदले हुए, शायद वैसे ही।   हर कदम जो इस धरती पर पड़ा, उसने एक निशान छोड़ा था। रेत में धंसे वो अनगिनत पाँव, जो संगम की ओर भागे थे, अब पीछे छूटे हुए से लग रहे थे। गंगा बह रही थी, वैसी ही जैसी सदियों से बहती आई है। वो जानती थी कि ये मेला अस्थायी था, जैसे जीवन। लोग आ...

"खामोशी का शोर"

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पहाड़ों की ऊँचाइयों पर बसा वह छोटा-सा गाँव, जहाँ सूरज की पहली किरण देवदार की शाखों को छूकर धरती पर गिरती थी। वहीं कहीं, उन्हीं वादियों में एक लड़की रहती थी— नित्या। अल्हड़, बेख़ौफ़, और शिव की अनन्य भक्त। उसकी आँखों में हिमालय की ठंडक थी, पर मन किसी जलते हुए दीपक की लौ सा था। वह शिक्षिका थी, पर उसके अपने ही जीवन के पाठ अनकहे रह गए थे।   रात को जब पहाड़ों पर सन्नाटा घिर आता, तो वह अक्सर अपने कमरे की खिड़की पर बैठ जाया करती। उसकी निगाहें दूर किसी अदृश्य बिंदु को ताकतीं, और मन में एक अजीब-सी हलचल उठती। वह खुद से कहती— " मुझे अंधेरे से डर लगता है क्योंकि जब सब कुछ शांत होता है, तो मेरे मन में एक द्वंद उत्पन्न होता है।" न जाने कितनी रातें उसने यूँ ही जागकर बिता दी थीं, न जाने कितनी बार उसने अपने भीतर के तूफानों को शब्दों में ढालने की कोशिश की थी, पर फिर भी कागज़ कोरा ही रह जाता। " मैं लिखना चाहूँ, लिख नहीं पाती, कहना चाहूँ, तो कह नहीं पाती..." शब्द उसकी आत्मा में कैद होकर रह जाते।   दिनभर वह अपने विद्यार्थियों को जीवन के पाठ पढ़ाती, उनकी हँसी में अपनी चुप्पी ...

"Wrinkles of Love"

The night had settled deep, and the room was drenched in a strange silence. A faint yellow light seeped through the window and fell softly on the bed—the bed we had once shared. The crumpled sheet, marked with countless wrinkles, lay like a silent witness to all that had been said and unsaid between us. Each wrinkle carried a story—some completed, some left unfinished. After you left, I tried countless times to straighten the sheet. Yet, every time I smoothed it out, deeper wrinkles appeared, as though mocking my efforts. That sheet, that bed, those wrinkles... they weren’t just objects anymore; they were our history etched in fabric. “Every wrinkle tells a story, not of age but of experience,” I once read somewhere. And this sheet seemed to carry our entire journey. Do you remember the first time we sat on this bed, sharing our thoughts and dreams? It was a rainy evening. You extended your damp hands toward me, raindrops still clinging to your fingertips. Water dripped from your hair...